Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act, 1996” (PESA)

पेसा (PESA) अधिनियम, 1996 :

पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 जो पेसा के नाम से जाना जाता है, संसद का एक कानून है न कि पांचवीं एवं छठी अनुसूची जैसा संवैधानिक प्रावधान। वर्ष 1996 में "भूरिया समिति" के सिफारिशों पर संसद में "पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रोंं का विस्तार) विधेयक" प्रस्तुत किया गया एवं "पेसा अधिनियम" दोनों सदनों से पारित होने के बाद 24 दिसंबर 1996 को राष्ट्रपति की सहमति से हुआ।

यह कानून की तरह ही है जो संविधान की पांचवीं अनुसूची देश के 10 राज्यों में लागू है। ये हैं- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, ओडिशा एवं राजस्थान। ये राज्य 10.4 करोड़ जनजाति लोगों में से 7.6 करोड़ लोगों को समावेशित करते हैं जो 2011 की जनगणना में गिने गए थे। इस प्रकार पेसा के अंतर्गत जनजातियों की 73 प्रतिशत जनसंख्या आ जाती है। दूसरी तरफ छठी अनुसूची में उत्तर-पूर्व का कुछ ही जनजाति क्षेत्र आता है, संपूर्ण उत्तर- पूर्व में जनजातियों की जनसंख्या मात्र 1.24 करोड़ है। इस प्रकार पेसा अधिनियम जनजातियों की बड़ी जनसंख्या को शक्ति प्रदान करता है।

पेसा अधिनियम का महत्त्व :
  • "पेसा" आदिवासी क्षेत्रोंं में अलगाव की भावना को कम करेगा।
  • भूमि के अवैध हस्तांतरण पर रोक लगेगी।
  • प्राकृतिक संसाधनों के नियंत्रण एवं प्रबंधन से आजीविका में सुधार होगा।
  • सार्वजनिक आबादी में गरीबी और पलायन कम हो जाएगा।
  • जनजातीय आबादी के शोषण में कमी आएगी क्योंकि वे ऋण देने, शराब की बिक्री, खपत एवं ग्रामीण हाट-बाज़ारों का प्रबंधन करने में सक्षम होंगे।
  • पेसा अधिनियम जनजातियों में रीति-रिवाजों और जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान एवं विरासत को संरक्षित करेगा।
पेसा अधिनियम द्वारा ग्राम सभा एवं पंचायतों के अधिकार :
  • अनुसूचित जनजाति को दिये जाने वाले ऋण पर नियंत्रण।
  • सामाजिक क्षेत्र में कार्यकर्त्ताओं और संस्थाओं, जनजातीय उप-योजना और संसाधनों सहित स्थानीय योजनाओं पर नियंत्रण।
  • एक उचित स्तर पर पंचायतों को लघु जल निकायों की योजना और प्रबंधन का कार्य सौंपा गया।
  • एक उचित स्तर पर ग्राम सभा एवं पंचायतों द्वारा खान और खनिजों के लिये संभावित लाइसेंस, पट्टा, रियायतें देने के लिये अनिवार्य सिफारिशें करने का अधिकार।
  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास में अनिवार्य परामर्श का अधिकार।
  • भूमि हस्तांतरण को रोकना और हस्तांतरित भूमि की बहाली।
  • मादक द्रव्यों की बिक्री/खपत को विनियमित करने का अधिकार।
  • लघु वनोपज का स्वामित्व।
  • ग्रामीण हाट-बाजारों का प्रबंधन।
पेसा के कार्यान्वयन पर सबसे व्यापक दिशा-निर्देशों को 21 मई 2010 को जारी किए गए थे। दिशा - निर्देशों में राज्यों को निम्न सलाहें दी गई हैं (source : https://pesadarpan.gov.in/rules):
  • आदर्श (मॉडल) पेसा नियमों को अपनाना।
  • राज्य पंचायती राज अधिनियमों में पेसा के प्रावधानों के अनुरूप संशोधन।
  • खान एवं खनिज, लघु वनोपज, आबकारी, पैसा उधार देने, आदि पर कानूनों, नियमों, कार्यकारी निर्देशों में संशोधन
  • ग्राम सभा को सशक्त बनाना और ग्राम सभा द्वावा पालन करने के लिए 2 अक्टूबर, 2009 को जारी दिशा निर्देशों का अनुपालन । 
  • मिशन मोड के रूप में ग्राम सभा को सक्रिय करना।
  • पंचायत पदाधिकारियों (निर्वाचित प्रतिनिध एवं कर्मचारी) के लिए पेसा पर नियमित प्रशिक्षण का आयोजन।
  • पेसा के कार्यान्वयन की समीक्षा करने के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक अंतर-विभागीय समिति का गठन।
  • जनजाति सलाहकार परिषदों और जनजातीय अनुसंधान संस्थानों को सक्रिय करना।
  • पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में प्रशासनिक मशीनरी को मजबूत बनाना।
  • राज्य निर्वाचन आयोगों को ''गांवों'' को परिसीमित करने के लिए अधिदेश ।
  • वन अधिकार अधिनियम, 2006 में दी गई लघु वनोपजों की परिभाषा को सभी कानूनों और नियमों में शामिल करना।


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